एक प्रफेसर थे, उन्हें बहुत शौक था कि वे जिंदगी और मौत के रहस्य को जानें। उन्होंने बहुत से धर्मग्रंथ पढ़े, शास्त्रों का अध्ययन किया, लेकिन जीवन और मौत का रहस्य समझ में नहीं आया। वे हर समय इसी चिंता में रहते थे कि मेरी जिंदगी कम होती जा रही है। मैं इतना पढ़ा-लिखा हूं, फिर भी मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि जिंदगी का ध्येय क्या है? मेरी जिंदगी ऐसी ही चलती जा रही है।
एक बार वे समुद्र के किनारे टहल रहे थे। अपने खयालों में डूबे हुए थे, चिंतित थे। देखा कि तट पर एक छोटा सा लड़का बैठा हुआ था। वह कुछ परेशान लग रहा था। प्रफेसर साहब ने उससे पूछा, क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूं? लड़के ने उनकी तरफ देख कर कहा कि आप तो मुझसे भी ज्यादा चिंतित लग रहे हैं, आपका प्याला कहां है?
प्रफेसर साहब चौंके, कहा, तुम किस प्याले की बात कर रहे हो? मुझे समझ में नहीं आया।
लड़के ने कहा, मैं तो चिंता में हूं ही, लेकिन आप भी बहुत चिंता में लग रहे हो। हो सकता है, हम दोनों की चिंता एक जैसी हो। मैं चाहता हूं कि मेरे प्याले में यह समुंदर भर जाए, लेकिन कोई तरीका समझ में नहीं आ रहा है। आप भी शायद इसी चिंता में यहां टहल रहे हैं। मैं तो छोटा हूं, मेरा प्याला भी छोटा है। आप तो बड़े हैं, आपका प्याला बड़ा होगा। क्या पता, आपके प्याले में समुंदर आ जाए।
प्रफेसर साहब हंसने लगे। उन्होंने लड़के से कहा, बेटा, हम सब बालक ही हैं। हरेक जीव इस दुनिया में बालक के समान है। लेकिन एक बात उनके मन में घर कर गई कि कोई छोटा प्याला लेकर घूम रहा है, कोई बड़ा प्याला, और कोई उससे भी बड़ा प्याला। समुंदर तो किसी के प्याले में नहीं समा रहा है।
किसी को तंदुरुस्ती चाहिए, किसी को पैसे चाहिए, किसी को अक्ल चाहिए। लेकिन हमारे प्याले भर नहीं रहे। और बहुत बार हम यह सोचना शुरू कर देते हैं कि शायद दूसरों का प्याला बड़ा है। इसलिए उनको बहुत कुछ मिलेगा, उनके प्याले में शायद समुंदर समा जाए। लेकिन जिनका प्याला जितना बड़ा है, उनका अहंकार भी उतना बड़ा है। और जिनके प्याले में अहंकार पहले से भरा है, उनका प्याला किसी और चीज से क्या भरेगा?
महापुरुष समझाते हैं कि फिक्र मत करो। जो पल निकल गया, उसे आप बदल नहीं सकते। जो पल आएगा, उसे भी आप रोक नहीं सकते। इसलिए जिस पल में जी रहे हो, उसका उपभोग करो। तुम्हारे प्याले में जितना मिला है, उतने से संतोष करो। तभी तुम बेफिक्र हो कर जी सकोगे।
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